नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-10

गुरुदेव मन में एक शंका है??यदि आप समाधान करें तो कहीं और भटकाव की स्थिति ना हो। मनोचिंतन और अतिरिक्त श्रम की आवश्यकता नहीं बचेगी, कहते हुए आशातित नजरों से चित्रसेन जी अपने गुरु से कह रहे थे। भटकाव श्रम और शंका इन दोनों को कम करने का कार्य ही गुरु का है।

चित्रसेन यदि शिष्य के मन में तिल मात्र भी शंका होगी तो वह गुरु की आज्ञा को मानने में संकोच करेगा। ऐसी स्थिति में वह प्रश्नों के उत्तर हेतु कहीं और भटक सकता है और इस स्थिति में अत्यधिक मानसिक और शारीरिक श्रम के साथ असत्य जन्म लेता है।

गुरु और शिष्य के संबंध संतुलित न होने के कारण कटु और टकराहट की स्थिति में भी आ सकते हैं, क्योंकि एक गुरू पूर्णहित के साथ एक पेड़ की तरह शिष्य का विद्या से सिंचन करता है, ताकि वह आगे चलकर एक विशाल वृक्ष की तरह अपनी छाया से भटके हुए राहगीरों सफर करने वाले यात्री और शरण में रहने वाले पशु पक्षी सबको शीतल छाया दे सकता है। पानी को समेटकर धरती की गहराईयों में असुरक्षित रख सकता है।

भूमि की उपजाऊ क्षमता के साथ पर्यावरण का संतुलन बनाए रख सकता है। हां, चित्रसेन कुछ इसी तरह समझो एक गुरु की तरफ से शिष्य का निर्माण शायद इसका महत्व समझते हुए काफी उम्र बीत जाती है, और अनुभव के आधार पर ईश्वरीय कृपा से स्वयं ही इस अस्तित्व का ज्ञान भी हो जाता है। कहो संकोच ना करो। अगर सामर्थ्य हुआ तो प्रश्न का उत्तर दूंगा और ना हुआ तो ढूंढ कर दूंगा। लेकिन अपने शिष्य को शंका की स्थिति में रखना यह गुरु परंपरा का हिस्सा नहीं।

तब चित्रसेन हाथ जोड़कर यह सोच शायद गुरु बुरा मान गए। उन्हें मनाते हुए कहने लगे। गुरुदेव सिर्फ दो ही प्रश्न.... लेकिन उसे एक समझा जा सकता है। मुझे सिर्फ यह बताये कि सत्य और असत्य दोनों में क्या अंतर है, और किस समय असत्य भी सत्य का रूप ले सकता है और स्वयं सत्य असत्य को स्वीकार कर लेता है। यह वाक्य मैंने अपनी स्मृति में कई बार सुना और अनुभव किया, लेकिन इसका कोई उचित उत्तर ना होने पर मैं हमेशा यह सोचता रहता हूं कि कभी कोई याचक मुझसे यह प्रश्न न कर बैठें।

आपकी दी हुई विद्यायें इस संपूर्ण संसार पर विजय दिलाने में सक्षम है। मां के आशीर्वाद से किसी भी संकट से बचे रहना और आवश्यकता पड़ने पर किसी को संकट से उभारने में सर्व समर्थ है। लेकिन फिर भी यह सवाल मेरे लिए पूर्ण संतुष्टि या यह सवाल मेरी पूर्ण संतुष्टि पर विराम लगा देता है।

तब गुरु श्रेष्ठ अपने शिष्य को गलानि में देख दुखित होते हुए कहने लगे। चित्रसेन लगता तुम्हारे मन में अब तक कल संध्या के समय हुए प्रभाव का दृश्य का प्रभाव मिटा नहीं। अभी तक तुम चिंतित हो, आखिर क्यों?? लेकिन चलो पहले तुम्हारी शंका का समाधान करना आवश्यक है।

हे चित्रसेन सत्य साकार निराकार है। इसे ब्रह्म भी कहा जाता है। शास्त्रों से हटकर यदि कहूं तो सत्य वह है जो पूर्व निर्धारित है, संसार की रचना से भी परे हैं। हमारी सोच से भी पहले वह सोच निर्धारित है कि यह जान लो। यदि मनुष्य कहता है कि कोई कर्म उसने किया तो यह सत्य नहीं। क्योंकि सत्य तो यह है कि सृष्टि का हर प्राणी जो भी करेगा, वह पूर्व निर्धारित है और यही परम सत्य है, जो भी घट रहा है और जो घटित होने वाला है, यह सब सृष्टि की रचना से पहले ही निर्धारित हो गया था। किसी न किसी कड़ी से जुड़ते हुए यह संसार आगे बढ़ता जाता है। सरल शब्दों में तुम्हें यह कहूं कि हमारी सोच ही सत्य का निर्धारण करती है।

मैं आशय समझा नहीं गुरुदेव फिर असत्य क्या है? चित्रसेन असत्य सत्य को परिवर्तित करने का प्रयास हैं। जनमानस की भाषा में कहे तो सत्य को सही रूप में ना बताकर किसी और रूप में दर्शाना असत्य है, और कभी कबार यह असत्य सत्य में परिवर्तित हो जाता है, और पूर्ण निष्ठा देख सत्य उस असत्य को स्वीकार कर लेता है।

इससे संबंधित मैं तुम्हें कुछ उदाहरण देता हूं, शायद कुछ तुम्हें समझ आ जाए कि एक ही समय में मनुष्य के द्वारा इस सत्य को लेकर निडरता बनी रही, और वही सत्य ने किस तरह असत्य को स्वीकार किया, अनेको उदाहरण है इस सृष्टि में...

यदि मैं प्रारंभ से कहूं जिसकी मनुष्य चर्चा करता है, तो रानी शतरूपा और राजा मनु ने अपनी वृद्धावस्था में एक पेड़ पर खड़े रहकर भगवान विष्णु की घोर तपस्या की, और उन्हें वरदान मिला कि वे प्रभु को पुत्र रूप में प्राप्त करेंगे। इसी प्रकार उन्होंने अपनी देह त्याग दिया और अगले जन्म में दशरथ रूप में त्रेतायुग मे इक्ष्वाकु वंश के यशस्वी और पराक्रमी राजा अज के यहां रानी इंदुमती के गर्व से हुआ। जिसकी स्थापना स्वयं वैवस्वत मनु ने की थी।

तब हे चित्रसेन यह कहना कि राजा दशरथ का जन्म स्वयं एक सामान्य समय की धारा है, तो कहां तक सही होगा, क्योंकि भगवान राम अर्थात एक पीढ़ी पूर्व का जन्म तो पूर्व निर्धारित था। तब यदि रानी इंदुमती दशरथ को अपना पुत्र कहें और उन पर अपना अधिकार जमाते हुए यह कहे कि यह पुत्र मेरा है, तो क्या यह पूर्ण सत्य है....नहीं ना.... क्योंकि राजा दशरथ का जन्म तो निर्धारित था ना, और फिर राजा दशरथ को श्रवण कुमार का श्राप मिलना भी एक स्वाभाविक सत्य है, क्योंकि श्रवण कुमार के श्राप से एक बात तो सत्य हो गई कि राजा दशरथ की जिन्हें निस्तान होने की आशंका थी, उन्हें यह ज्ञात था।

यह कथन सत्य है कि कभी भी किसी ऋषि का श्राप व्यर्थ नहीं जा सकता और वे बेफिक्र रहे। इसका मतलब यह भी सत्य है कि प्रभु श्री राम का जन्म दोनों ही प्रकार से पूर्व निर्धारित है। तब कहो तुम्हें क्या लगता है, सत्य क्या है??और अब तुम्हारे अनुसार असत्य क्या हो सकता है??

आचार्य चित्रसेन शांतचित होकर गुरु श्रेष्ठ की बात को सुने जा रहे थे, और सत्य और असत्य की परिभाषा को बखूबी समझने का प्रयास कर रहे थे। शायद आज आचार्य चित्रसेन को सत्य और असत्य की परिभाषा अच्छे से समझ आ गई।

क्रमशः.....

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1 Comments

Mohammed urooj khan

25-Oct-2023 12:40 PM

👍👍👍👍

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